Monday, March 10, 2014



 आवाज़ें





 आवाज़ें खिलखिलाती हैं होठों पर
जब बच्चे को मिल जाता है नया खिलौना 


 आवाज़ें मुस्कुराती हैं जहन में
जब छू जाती है हवा उसकी खुश्बू वाली

 आवाज़ें ठहर जाती हैं वक्त की तहों में
जब बिछड़ जाता है कोई साथी लंबे सफर का

आवाजें शामिल हो जाती हैं शोर में
जब मेले में कुछ पल को अलग होता है परिवार

 आवाज़ें टकराती हैं पहाड़ और चट्टानों से
जब तन्हा महसूस करता है कोई भीड़ में


आवाज़ें रोशनी बन जाती हैं अंधेरे में
जब खामोश हो जाता है कोई डरकर अकेले में

आवाज़ें जिस्म से उतारकर रख दी जाती हैं
जब खत्म हो जाती है किसी रिश्ते की मियाद

आवाज़ें मर जाती हैं बूढ़ी होकर, कांपते हुए
जब अनसुनी की जाती हैं लगातार, बार-बार

आवाज़ें फिर जन्मती हैं नन्ही किलकारियों में
तब सुकून देती हैं, बढ़ती हैं, पलती हैं, फैलती हैं


-कुहू

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